मैं निज मति अनुसार, कहउँ उमा सादर सुनहु ॥
उदाहरण 2
सुनि केवट के बैन , प्रेम लपेटे अटपटे।
बिहँसे करुणा ऐन , चितइ जानकी लखन तन।।
उदाहरण 3
बंदहुँ पवन कुमार , खल- बन पावक ज्ञान घन।
जासु हृदय आगार , बसहिं राम सर चाप धर।।
रोला छंद-
यह एक अर्द्ध सम मात्रिक छंद है । यह भी दोहे का उल्टा होता है। इसके प्रथम और तृतीय चरण में 11 -11 मात्राएँ एवं द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13 -13 मात्राएँ होती हैं । कुल 24 मात्राएँ एक पंक्ति में होती हैं । इसके अंत में दो गुरु या दो लघु आना उत्तम होता है।
विशेष- 1. सोरठा और रोला के प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13 -13 मात्राएँ होती हैं।
2. किन्तु सोरठा के मध्य में तुक होता है , जबकि रोला के अंतिम में तुक होता है।
3. सोरठा पूर्णतः दोहा का उल्टा होता है, किन्तु रोला नहीं। रोला के अंत में दो गुरु या दो लघु का आना उत्तम माना जाता है।
उदाहरण 1.
S I I S S S I S I S S S SS
बाहर आया माल , सेठ ने जो था चाँपा ।
बंद जेल में हुए , दवा बिन मिटा मुटापा ॥
उदाहरण 2.
ससि बिनु सूनी रैन , ज्ञान बिनु ह्रदय सूना।
कुल सूना बिनु पुत्र , पत्र बिनु तरुवर सूना।
गज सूना बिनु दंत , ज्ञान बिनु साधू सूना।
द्विज सूना बिनु वेद , ललित बिनु शायर सूना।
उदाहरण 3
नीलाम्बर परिधान , हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य चंद्र मुकुट , मेखला रत्नाकर है।
नदियाँ प्रेम प्रवाह , फूल तारे मण्डप है।
बंदीजन खग वृन्द ,शेषफन सिहासन है।
उल्लाला छंद-
यह एक अर्ध्दसम मात्रिक छंद है । मात्रिक छंद है । इसके प्रत्येक चरण में 15 व 13 की यति पर कुल 28 मात्राएँ होती हैं।
S I I I S I S S I I I I I I I S I I S I S
उदाहरण - यों किधर जा रहे हैं बिखर, कुछ बनता इससे कहीं ।
संगठित ऐटमी रूप धर , शक्ति पूर्ण जीतो मही ॥
या
हे शरण दायनी देवि तू ,करती सबका त्राण है।
हे मातृभूमि सन्तान हम, तू जननी तू प्राण है। ।
या
करते अभिषेक पयोद हैं , बलिहारी इस देश की।
हे मातृभूमि तू सत्य ही , सगुण मूर्ति सर्वेश की।।
कुण्डलियाँ छंद -
यह विषम मात्रिक छंद है । इसमें 6 पंक्तियाँ होती हैं । एक दोहा और रोला मिलाने से यह छंद बन जाता है। दोहे का प्रथम शब्द कुण्डलियाँ का अंतिम शब्द होता है ।
S S S I I S I S S S S I I S I
उदहारण 1 बीती ताहि बिसारि दे , आगे की सुधि लेइ ।
जो बनि आवै सहज में , ताही में चित देइ ॥
S S S I I S I S I SS I I S S
ताही में चित देइ, बात जोई बनि आवै ।
दुर्जन हँसे न कोइ , चित्त में खता न पावै॥
कह गिरधर कविराय , यहै करु मन परतीती ।
आगे की सुख समुझि , होइ बीती सो बीती ॥
उदहारण 2
दौलत पाय न कीजिए, सपने में अभिमान।
चंचल जल दिन चारि को,ठाऊँ न रहत निदान।
ठाऊँ न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै।
मीठे वचन सुनाय, विनय सबही की कीजै।
कह गिरधर कविराय , अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निशि दिन चारि , रहत सबही के दौलत।।
छप्पय छंद -
यह विषम मात्रिक छंद है । इसमें प्रथम चार पद रोला के (11 +13 )और अंतिम दो पद उल्लाला (15 +13 ) के होते हैं। कुल 6 पद होते हैं।
उदाहरण 1 -
एक नया इतिहास , रचा करते हैं जो नर ।
करुणा और प्रेम से , जिनका भरा हृदय घर ॥
उनका जीवन धन्य , वही हैं युग के नायक ,
उनके यश का गान, किया करते कवि गायक ।
राजन ऐसे पुरुष ही करते जग कल्याण हैं ।
पूजे जाते जगत में पाते जान सम्मान हैं ।
उदाहरण 2
नीलाम्बर परिधान , हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य चंद्र मुकुट , मेखला रत्नाकर है।
नदियाँ प्रेम प्रवाह , फूल तारे मण्डप है।
बंदीजन खग वृन्द ,शेषफन सिहासन है।
करते अभिषेक पयोद हैं , बलिहारी इस देश की।
हे मातृभूमि तू सत्य ही , सगुण मूर्ति सर्वेश की।।
गीतिका छंद - यह एक सम मात्रिक छंद है । इसमें चार चरण होते हैं । प्रत्येक चरण में 14 और12 की यति से 26 मात्राएँ होती हैं । प्रत्येक चरण के अंत में लघु और गुरु होता है ।
उदाहरण 1 हे प्रभो आनन्द दाता , ज्ञान हमको दीजिए ।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को , दूर हमसे कीजिए ।
लीजिए हमको शरण में , हम सदाचारी बनें ।
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक , वीर व्रत धारी बनें ।
उदाहरण 2
जल जीवन है चेतन का , सृष्टि का आधार है।
जल बिना जगत है सूना , शुष्क सब संसार है।
जल की बूँदों में छिपा, नव सृजन का राज है।
जल है तो जग है सारा , जल बिनु सब निसार है।
उदाहरण 3.
साधु भक्तों में सुयोगी संयमी बढ़ने लगे।
सभ्यता की सीढ़ियों पर ,सूरमा चढ़ने लगे।
वेद मन्त्रों की विवेकी , प्रेम से पढ़ने लगे।
वंचकों की छातियों में शूल से गढ़ने लगे।
हरिगीतिका छंद- यह एक सम मात्रिक छंद है । इसमें चार चरण होते हैं । प्रत्येक चरण में 16 और 12 की यति से 28 मात्राएँ होती हैं ।
उदाहरण 1
वह सनेह की मूर्ति दयानिधि, माता तुल्य नहीं है ।
उसके प्रति कर्तव्य तुम्हारा, क्या कुछ शेष नहीं है ।
हाथ पकड़ कर प्रथम जिन्होंने, चलना तुम्हें सिखाया ।
भाषा सिखा हृदय का अद्भुत, रूप स्वरूप दिखाया ।
उदाहरण 2
अधिकार खोकर बैठे रहना, यह महा दुष्कर्म है।
न्यायार्थ अपने बंधु को भी , दण्ड देना धर्म है। ।
इस ध्येय पर ही कौरवों और पांडवों का रण हुआ।
जो भव्य भारत वर्ष के कल्पान्त का कारण हुआ। ।
उदाहरण 3
है आज कैसा दिन न जाने , देव-गण अनुकूल हों।
रक्षा करें प्रभु मार्ग में जो, शूल हों वे फूल हों।
कुछ राज-पाट न चाहिए, पाऊँ न क्यों मैं त्रास ही।
हे उत्तरा के धन ! रहो तुम उत्तरा के पास ही।
वर्णिक छंद, परिभाषा एवं उदहारण-
वर्ण की गणना के आधार पर जिस छंद की रचना की जाती है, उसे वर्णिक छंद कहते हैं । इसके दो प्रकार हैं-
1. साधारण वर्णिक छंद में प्रत्येक चरण में 26 वर्ण तक होते हैं। जैसे - सवैया छंद
2. जिस छंद रचना में प्रत्येक चरण में 26 से अधिक वर्ण होते हैं , उसे दण्डक वर्णिक छंद कहा जाता है । जैसे- घनाक्षरी छंद।
प्रमुख वर्णिक छंद-
1. घनाक्षरी -
यह वर्णिक सम वृत्त छंद है । इसके प्रत्येक चरण में 16- 15 की यति पर कुल 31 वर्ण होते हैं। अंतिम वर्ण गुरु होता है । उदहारण -
इन्द्र जिमि जम्भ पर, बाडव सुअम्भ पर ,
रावण सदम्भ पर रघुकुलराज हैं ।
पौन बारि बाह पर, सम्भु रतिनाह पर ,
ज्यों सहस्त्रबाहु पर, राम द्विजराज हैं ।
दावा द्रुमदंड पर , चीता मृगझुंड पर
भूषण वितुण्ड पर , जैसे मृगराज हैं ।
तेज तम अंस पर , कान्ह जिमि कंस पर ,
त्यों मलिच्छ वंस पर , सेर शिवराज हैं ।
2. देव घनाक्षरी - यह वर्णिक सम वृत्त छंद है । इसके प्रत्येक चरण में 8-8 8- 9 की यति पर कुल 33 वर्ण होते हैं। इसके चरण के अंत में तीन लघु वर्ण होते हैं । उदाहरण -
झिल्ली झलकारें , पिक चटक पुकारै बन ,
मोरनि गुहारै उठैं जुगनूँ चमकि- चमकि ।
घोर घन कारे भारे धुरवा धुरारैं धाय ,
धूमनि मचावैं नाचें दामिनि दमकि - दमकि ।
3. रूप घनाक्षरी - यह वर्णिक सम वृत्त छंद है । इसके प्रत्येक चरण में 8-8 8- 8 की यति पर कुल 32 वर्ण होते हैं। इसके चरण के अंत में लघु वर्ण होते हैं । उदाहरण -
उदाहरण
प्रभु रुख पाईकै बुलाई बाल घरनिहि ,
बंदि कै चरन चहुँ दिसि बैठे घेरि-घेरि।
छोटो सो कठौता भरि आनि पानी गंगाजी को,
धोई पाँय पीवत पुनीत वारि फेरि-फेरि।
तुलसी सराहै ताको भागु सानुराग सुर,
बरसै सुमन जय-जय कहै टेरि-टेरि।
विबुध सनेह सानी बानी असयानी सुनि-सुनि,
हँसे राघौ जानकी लखन तन हेरि-हेरि।
4. कवित्त मनहरण - यह वर्णिक सम वृत्त छंद है । इसके प्रत्येक चरण में 16 -15 की यति पर कुल 31 वर्ण होते हैं। इसके चरण के अंत में गुरु वर्ण अवश्य होता हैं । उदाहरण -
वृष कौ तरनि तेज सहसौ किरन करि ,
ज्वालन के जाल विकराल बरखत हैं ।
तचति धरनि , जग जरत झरनि , सीरी
छाँह कौ पकरि पंथी - पंछी बिरमत हैं ।
सेनापति नैक दुपहरी के ढरत , होत
धमका विषम , ज्यों न पात खरकत है ।
मेरे जान पौनों सीरी ठौर कौ पकरि कौनो ,
घरी एक बैठि कहूँ घामै बितवत है ।
5. मन्दाक्रान्ता - वर्णिक सम वृत्त छंद है । 10 -7 की यति पर प्रत्येक चरण में कुल 17 वर्ण होते हैं । वर्णों का क्रम निम्नानुसार होता है - भगण भगण नगण तगण तगण और अंत में दो गुरु होता है ।
उदाहरण 1.
कोई पत्ता नवल तरु का पीत जो हो रहा हो ।
तो प्यारे के दृग युगल के सामने ला उसे ही ।
धीरे- धीरे सम्हल रखना औ उन्हें योन बताना ।
पीला होना प्रबल दुख से प्रेषिता सा हमारा ।।
उदाहरण 2
राधा जाती प्रति दिवस थी पास नंदागना के।
नाना बातें कथन करके थी उन्हें बोध देती।
जो वे होती परम व्यथिता मूर्छिता या विपन्ना।
तो वे आठों पहर उनकी सेवना में बिताती।
6. द्रुत बिलम्बित - वर्णिक सम वृत्त छंद है । कुल 12 वर्ण होते हैं । वर्णों का क्रम निम्नानुसार होता है - नगण, भगण, भगण, रगण, संक्षेप में इसे हम नभ भर के रूप में याद कर सकते हैं ।
उदाहरण -
प्रबल जो तुम में पुरुषार्थ हो।
सुलभ कौन तुम्हें न पदार्थ हो।
प्रगति के पथ में विचारो उठो।
भुवन में सुख शांति भरो उठो।
7. इन्द्रवज्रा -वर्णिक सम वृत्त छंद है । कुल 11 वर्ण होते हैं । वर्णों का क्रम निम्नानुसार होता है - तगण तगण जगण अंत में दो गुरु वर्ण होता है । उदाहरण -
होता उन्हें केवल धर्म प्यारा ,
सत्कर्म ही जीवन का सहारा ।
8. उपेन्द्रबज्रा - वर्णिक सम वृत्त छंद है । कुल 11 वर्ण होते हैं । वर्णों का क्रम निम्नानुसार होता है - जगण तगण जगण अंत में दो गुरु वर्ण होता है । उदाहरण -
बिना बिचारे जब काम होगा , कभी न अच्छा परिणाम होगा ।
9. मालिनी - वर्णिक सम वृत्त छंद है । कुल 15 वर्ण होते हैं । 7- 8 वर्णों पर यति होती है । वर्णों का क्रम निम्नानुसार होता है - नगण नगण भगण यगण यगण अंत में दो गुरु वर्ण होता है । उदाहरण -
1. पल- पल जिसके मैं पंथ को देखती थी ।
निशिदिन जिसकेही ध्यान में थी बिताती।
2. प्रिय पति वह मेरा, प्राण प्यारा कहाँ है।
दुख-जलधि निमग्ना, का सहारा कहाँ है।
अब तक जिसको मैं, देख के जी सकी हूँ।
वह हृदय हमारा, नेत्र तारा कहाँ है।।
10. सवैया - वर्णिक सम वृत्त छंद है । एक चरण में २२ से 26 तक वर्ण होते हैं । इसके कई भेद हैं , जैसे - 1. मत्तगयन्द 2. सुंदरी 3. मदिरा 4. दुर्मिल 5. सुमुखि 6. मानिनी 7. किरीट 8. बाम 9. गंगोदक 10. सुमुखी 11. महाभुजंग 12. मुक्तहरा आदि ।
मत्तगयन्द सवैया छंद - यह एक सम वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 23 वर्ण होते हैं। इसमें प्रत्येक चरण में सात भगण और अंत में दो गुरु होते हैं। इसे मालती सवैया भी कहा जाता है।
सीस पगा न झगा टन में प्रभु जाने को आहि बेस केहि ग्रामा ।
धोती फटी सी लटी दुपटी अरु पाँय उपानह नहिं सामा ।
द्वार खरौ द्विज दुर्बल एक, रहयो चकि सौ बसुधा अभिरामा ।
पूछत दीनदयाल को धाम , बतावत आपनो नाम सुदामा ।
उदाहरण 2.
काज किए बड़ देवन के तुम वीर महाप्रभु देखि विचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुमसे नहीं जात है टारो।
वेगि हरौ हनुमान महाप्रभु जो कछु संकट होय हमारो।
को नहि जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो।
मदिरा सवैया - यह एक सम वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 22 वर्ण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 7 भगण और एक गुरु होता है।
उदाहरण -
सिंधु तर्यो उसको बनरा ,तुम पै धनु-रेख गई न तरी।
दुर्मिल या चंद्रकला सवैया- इसके प्रत्येक चरण में 24 वर्ण तथा 8 सगण होते हैं
उदाहरण- 1.
इसके अनुरूप कहें किसको वह कौन सुदेश समुन्नत है।
समुझै सुर लोक समान इसे उनका अनुमान असंगत है।
कवि कोविद वृन्द बखान रहे है सबका अनुभूति यही।
उपमान विहीन रचा विधि ने बस भारत के सम भारत है।
उदाहरण- 2.
पुरतै निकसी रघुवीर वधू धरि-धीर दये मग में डग द्वै।
झलकी भरि भाल कनी जल की पुट सूख गए मधुराधर वै।
फिर बूझति है चलनी केतिक पर्णकुटी करिहौ कित ह्वै।
तिय की लखि आतुरता पिय की अँखियाँ अति चारु चली जल च्वै।
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